पुस्तक संस्कृति और पुस्तक मेलों का मौसम
पुस्तक संस्कृति और पुस्तक मेलों का मौसम
Book Culture : विश्व के टॉप दस देशों में भारत का स्थान काफी समय से बना हुआ है। हो भी क्यों ना,पुस्तक को हमारी संस्कृति में ईश्वर या उसके सदर्श पूजा और माना जाता है।गुरुग्रंथ साहिब,रामायण गीता,कुरान बाइबल और जेंद अवेस्ता - पारसी धर्मग्रंथ इसके सजीव और प्रचलित उदाहरण हैं। हमारे जनसंख्या बहुल देश में पुस्तकें ज्ञान और मनोरंजन के साथ साथ रोजी -रोटी का भी साधन रही हैं।वर्तमान समय जब आज़ादी का अमृत महोत्सव अपने चरम पर है और अमृत काल की धमक सुनी जा सकती है। इसके साथ- साथ एक और बात जो हमारी देश में पुस्तकों के महत्त्व को उकेरती है कि हमारे यहां पुस्तक का सृजन, पठन और सहेज कर रखना हम भारतीयों को पुस्तक संस्कृति के अग्रदूतों में शामिल करता है।वर्तमान में कॉविड 19 की गिरफ्त से निकलता भारत आत्मनिर्भरता के प्रारंभिक चरणों में से गुजरता हुआ एक परिपक्व में पहुंचने को कृत संकल्प है और इस में हमारी पुस्तक संस्कृति का भी अहम योगदान है।
पुस्तक संस्कृति की बात हो और पुस्तक मेलों की चर्चा ना हो तो फिर हमारे जनमानस और देश को प्रसन्न और उत्सवधर्मा जनसंख्या वाला कैसे कहा जाएगा?! तो लीजिए इस बार के पुस्तक मेलों की शुरुआत बस होने ही वाली है।भारतीय प्रकाशक संघ सितंबर माह में दिल्ली पुस्तक मेला संभवतः 13से 17 सितंबर में आभासी अंदाज़ यानी वर्चुअल मोड /ऑनलाइन में आईटीपीओ के सहयोग से करने वाला है और 21 से 25दिसंबर 2022 में इसका फिजिकल यानी असली रूप में होना तय माना जा रहा है।यह दोनों प्रारूप दिल्ली और समूचे भारत को कितना आकर्षित कर इन आयोजनों में खींच पाएंगे इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य ही दे पाएगा।पर इतना तो तय हो गया कि निजी क्षेत्र ने अब पुस्तक मेला आयोजन में पहल कर सरकारी आयोजन यानी नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने भी अपने चेयरमैन प्रोफेसर गोविंद प्रसाद शर्मा और लेफ्टिनेंट कर्नल श्री युवराज मालिक निदेशक के स्तर से यह स्पष्ट कर दिया है कि सन 2022 ना सही पर फरवरी 2023 में नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला आईटीपीओ के सहयोग से विश्वस्तरीय नवनिर्मित प्रगति मैदान में अवश्य ही होगा; तिथियों की घोषणा अभी शेष है और ऐसा स्वाभाविक भी है क्योंकि विश्व स्तरीय पुस्तक मेला आयोजन में बहुत सी व्यवस्थाओं का आकलन और सामंजस्य बेहद अनिवार्य है।यह कड़वा तथ्य भी कि कोविड महामारी से रिकॉर्ड टीकाकरण के बाद हमारा देश इन बड़े आयोजनों को करने की स्थिति में आया है और हमारे विदेशी मेहमान भी तो आश्वस्त होने की अंदाज़ में हों कि अब भारत जाने में अनेक कोई हिचक नहीं है।
तो पुस्तक मेलों के आयोजन और उनकी तिथियां तो ज्ञात हो गई हैं।अब बात हमारी पुस्तक संस्कृति के प्रचार प्रसार और बुक रीडिंग की अभिरुचि को सिलसिलेवार कैसे बढ़ाया और निरंतर सशक्त रखा जाए।यूं भी अब हमारा देश युवाओं का देश है और यह यौवन का इंद्रधनुष अमृत काल यानी 2047तक रहने का अंदाज़ा है तब उसके बाद हम परिपक्व राष्ट्र की श्रेणी में होंगे। और डिजिटल प्रकाशन भी आजकल काफी प्रचलन में है और यह अब एक अनिवार्य अंग बन गया है और हमारा युवा इसे बहुत पसंद भी करता है।हमारी वर्तमान सरकार ने इस पर काफी गहन विचार के बाद इस पर बहुत कार्य योजनाओं को मूर्त रूप दिया है और कोरोना काल में डिजिटल मोड एक संकटमोचक रूप में आया और पुस्तक संस्कृति और पढ़ने की आदत को काफी बचाया और सहेजा भी है।परंतु यह एक विकल्प के रूप में प्रयोग में लाया जाना चाहिए।सही अर्थों में तो हमें अपने जन मानस और विशेष रूप से युवाओं को पुस्तकों से जोड़ना ही होगा क्योंकि पुस्तक के पेज को पलटना ,शब्दों के अर्थों को डिक्शनरी में देखना एक मानसिक कवायद का मौका और योग्यता बढ़ाने का मौका दोनों ही देते हैं और इसकी आज के ग्लोकल से ग्लोबल होते भारत को है भी।
एक और पक्ष जो हमारे पुस्तक प्रकाशन उद्योग से जुड़ा है और जिस पर बहुत अधिक ध्यान देने की महती आवश्यकता है वह है कॉपी राइट! और उसका कड़ाई से पालन। यदि हम ऐसा कर सकते हैं तो ना केवल स्थानीय,प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यही पुस्तक संस्कृति और पढ़ने की आदत हमें विश्व के श्रेष्ठतम राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा करेगा।इस के अतिरिक्त विश्व स्तरीय प्रकाशक और बहुत से विश्व स्तरीय पुस्तक महागतिविधियों और मेलों का रास्ता साफ हो जाएगा और देश में विदेशी निवेश की भी संभावनाएं बढ़ सकती हैं।
अलबत्ता हर स्थिति में पुस्तक पठन और प्रचलित अंदाज़ में बुक रीडिंग कल्चर का निरंतर बढ़ते रहना ,हमारे देश और जनमानस के हित में ही होगा।यहीं पर कहीं जरूरत महसूस होती है कुछ परिपक्व और दूरगामी एक्शन प्लान या कार्य योजना की।यहां पर कुछ सुझाव नितांत आवश्यक है,यथा
1 हमारी पुस्तक नीति का बनना और उसका क्रियान्वयन राष्ट्रीय शिक्षा नीति की संदर्भ में होना।
2.निजी और पब्लिक क्षेत्र का साथ साथ समन्वन्य और फिर किसी ज्वाइंट वेंचर यानी संयुक्त संस्थान का कार्य स्थिति में आना।
3 सरकारी क्र्यादेशों का समान रूप से दोनों क्षेत्रों को मिलना और खरीदी गई पुस्तकों को आमजन तक पहुंचाने की एक मैं मजबूत व्यवस्था का कार्य करने की व्यवहारिक हालात में आना।
4.मीडिया के द्वारा समुचित कवरेज और आम जनमानस में से नए लेखकों को चुनना,रुचि के अनुरूप पुस्तकों का सृजन और विपणन।
4 सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को अपनी प्रकाशन और रॉयल्टी की नीति को स्पष्ट रूप से सोशल मीडिया पर प्रस्तुत करना।
5शिक्षा मंत्रालय द्वारा शैक्षिक संस्थानों के सभी पक्षों का पुस्तक गतिविधियों में शामिल होना और उसकी समीक्षा।
6.डिजिटल प्रकाशन एक बाजार का वांछित आयाम बन कर सामने आया है और यह हमारे देश के लिए बेहद जरूरी भी है इस ओर विशेष प्रयास पेशेवर रुख से होने चाहिएं।
7. क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तक प्रकाशन और उनकी उपलब्धता भी स्थानीय और प्रादेशिक स्तर पर पुस्तक कल्चर और पढ़ने की आदत को नया आयाम और दिशा दे सकते हैं अतः इस प्रकार के नवाचार/इनोवेशन हमें करने ही होंगे और यहीं से स्थानीय और प्रादेशिक स्तर और भाषाओं के पुस्तक मेलों और गतिविधियों का रास्ता भी निकलेगा।
8 एक लीक से हटकर सुझाव वह यह की पुस्तक प्रकाशन के तकनीकी कार्यों से जुड़े अनुभवी व्यक्तियों को पुस्तक मेला या संबंधित गतिविधियों में बोलने और लिखने के लिए प्रेरित करना क्योंकि यह वह लोग हैं जो अपनी बात को सीधी साफ-साफ, सपाट भाषा में जनमानस को समझा सकते हैं और पुस्तक संस्कृति और किताब पढ़ने की इच्छा शक्ति या ललक को पैदा कर बढ़ा सकते हैं।
आजकल का युवा और आम जन अब बड़े- बड़े ग्रंथों की बजाय संक्षिप्त परन्तु सारगर्भित पुस्तकें पढ़ना चाहता है सो पुस्तकें भी उसी अंदाज़ में सोची समझी और सृजित की जानी चाहिएं। तभी हमारी पुस्तक संस्कृति विश्व पटल पर कोई गहरा असर छोड़ पाएगी।तो चलिए अब प्रतीक्षा रहेगी सितंबर माह से फरवरी 2023 तक के पुस्तक उत्सवों की और पढ़ने की आदत को और बेहतर बनाने के प्रयासों की।
यूं भी हमारे देश की राजधानी दिल्ली सन 2003 में विश्व पुस्तक राजधानी रहने का गौरव प्राप्त कर चुकी है और इस गौरव का दोबारा प्राप्त होना अभी शेष है उम्मीद है कि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास अन्य संस्थाएं सरकारी या गैर सरकारी सभी मिलजुल कर पुस्तक संस्कृति और पढ़ने की आदत को स्थायित्व प्रदान करेंगी और उन्हें दिल्ली या देश के किसी अन्य शहर को विश्व पुस्तक राजधानी होने का ताज पहना सकेंगी।